Saturday, February 16, 2019

बहुत शर्मनाक है कि जब भी कोई आतंकवादी घटना होती है तुरंत ही राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो जाता है।

 जम्मू में 44 जवान भाइयों की शहादत के बाद सियासी आरोप-प्रत्यारोप के शोर में असली मुद्दों का दबना लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक़ होगा। मैंने ख़ुद अपने सैनिक भाई को ऐसे ही एक हमले में खोया है और इसलिए मैं जानता हूँ कि चार दिन के शोर के बाद जवान के परिवार में जो वीरानगी छाती है वह कितनी जानलेवा होती है। जवानों की शहादत का सियासी फ़ायदा उठाने वाले लोग अपना नाम चमकाने के बाद जवान की विधवा बीवी या बूढ़ी माँ का हालचाल तक नहीं पूछते। मैंने सारा सियासी तमाशा अपनी आँखों से देखा है, इसलिए आज मैं सवालों के ज़रिए अपना दुख और चिंता आप सभी से साझा करना चाहूँगा।

मेरा पहला सवाल आतंकवादियों से है। जवानों की हत्या करके ख़ुद को महान साबित करने की कोशिश करने वाले तुम लोग क्या साबित करना चाहते हो? क्या किसी की निर्मम हत्या करके तुम्हारे नापाक इरादे कामयाब हो जाएँगे? जो भारत को कमज़ोर समझ रहे हैं, उन्हें जान लेना चाहिए कि भारत भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ जैसे वीरों का देश है। कायराना हमलों से आतंक और डर का राज स्थापित करने में ये कभी सफल नहीं होगें।

मेरे कुछ सवाल नेताओं से हैं। आज आप जैसे नेताओं में से कितनों के बेटे सेना में काम कर रहे हैं? क्या सेना के जवानों को अच्छी सुविधाएँ तभी मिलेंगी जब नेताओं के सगे-संबंधी बहुत बड़ी संख्या में उन इलाकों में तैनात किए जाएँगे जहाँ कदम-कदम पर जान जाने का ख़तरा रहता है? किसान खेत में मरे और उसका बेटा बॉर्डर पर, ऐसा कब तक चलता रहेगा? नेता लोग एसी स्टूडियो में बैठकर वीर रस से भरी बातें करते हैं लेकिन जब बात सेना के जवानों को बुलेट-प्रूफ़ जैकेट, अच्छा खाना जैसी सुविधाएँ देने की हो तो वही नेता बगलें झाँकने लगते हैं। उल्टे जो इस पर सवाल उठाये उसे ही नौकरी से बाहर कर दिया जाता है। इस देश ने देखा है कि किस तरह शहीद के घर जाने वाले नेता के लिए एसी, सोफा आदि का इंतज़ाम किया गया और बाद में नेता के जाते ही सारी सुविधाएँ वापस ले ली गईं। हमें ऐसे नेताओं और ऐसी राजनीति से सतर्क रहने की जरूरत है। वो लोग देश के लिए बहुत घातक हैं जो सेना की निष्ठा और मेहनत को अपनी कामयाबी बताने लगते है और अपनी पीठ खुद ही थपथपाते हैं। सवाल है कि अगर कामयाबी आपकी तो पुलवामा जैसे हमलों में तंत्र की विफलता की नैतिक जिम्मेदारी किसकी?

आज पूरा देश शोक और ग़ुस्से की मनोदशा में है। हमें वीर जवानों की जान की हिफ़ाज़त के लिए ज़रूरी कदम उठाने के लिए सरकार पर नैतिक दबाव डालने के लिए कमर कस लेनी चाहिए। हम न तो भविष्य में जवानों पर हमलों के मामलों में किसी की लापरवाही बर्दाश्त करेंगे और न सियासी फ़ायदे के लिए लच्छेदार भाषण देने वालों को सेना की असली ज़रूरतों पर परदा डालने देंगे। आइए, हम अपने देश के जवानों के बलिदान को नमन करते हुए उनके अधिकारों के पक्ष में एकजुट होकर आवाज़ उठाएँ।

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