युद्ध मुसलमानों के खिलाफ छेड़ा है उसकी लपटें अब आम मुसलमान को झुलसा रहीं हैं। कर्नाटक, दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड से जो खबरें आई हैं मानवता का शर्म से झुका देतीं हैं। इन राज्यों में कई मुसलमानों को कोरोना फैलाने के नाम पर प्रताड़ित किया गया, उन्हें बेरहमी से पीटा गया, उनके साथ जानवरों जैसा सलूक किया गया। मीडिया के फैलाए गए इस ज़हर ने पढ़े लिखे स्वस्थ आदमी के दिमाग को भी सांप्रदायिकता से संक्रमित कर दिया है। इस संक्रमण से पुलिस प्रशासन भी अछूता नहीं है। उत्तर प्रदेश के मेरठ जनपद के परीक्षितगढ़ थाना क्षेत्र मे हुई एक घटना बताती है की 'खाकी' भी मीडिया के इस प्रोपेगंडा जाल में फंस चुकी है। दरअसल परीक्षितगढ़ थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले खानपुर गांव का एक नाबालिग छात्र तीन दिन की जमात में मवाना गया था वहां से लौटने पर उसे परीक्षिगढ़ इंटर कॉलेज में क्वॉरेंटाइन कर दिया गया। गुरुवार शाम को मुबश्शिर नाम के छात्र की रिपोर्ट आई जिसमें उसे कोरोना पाॅजिटिव बताया गया। जिसके बाद उसे मेरठ के पांचली खुर्द स्थित क्वॉरेंटाइन सेंटर भेज दिया गया।
मुबाशिर के परिजनों ने बताया कि जब मुबाशिर को लेने के लिए एंबुलेंस आई तो प्रोपेगेंडा वहां पर मौजूद परीक्षितगढ़ पुलिस के दरोगा संजय बालियान ने उस बीमार छात्र को बेरहमी के साथ लाठियों से पीटना शुरू कर दिया। परिजनों के मुताबिकं दारोगा मुबश्शिर को पीटते हुए धर्म सूचक गालियां देते हुए कह रहे था कि बता और जाएगा जमात मे?...... मुबश्शिर को अब मेरठ के पांचली स्थित क्वाॅरेंटाइन सेंटर मे रखा गया है। परिजनों के मुताबिक उसके जिस्म पर लाठियों के निशान अभी भी मौजूद हैं। एक कोरोना संक्रमित इंसान के प्रति 'स्वस्थय' इंसानों का यह रवैय्या बताता है कि वे स्वस्थय नहीं बल्कि दिमाग़ी रूप से दिवालिया हो चुके हैं। सवाल यह है कि अगर कोई शख्स कोरोना संक्रमित होता है तो क्या उसे अपराधी माना जाएगा? क्या ऐसा भी कोई शख्स है जो खुद चाहकर अपनी मर्जी से बीमार होना चाहता हो? उसके बावजूद कोरोना रोगी मुसलमान को अपराधियों की तरह देखा जा रहा है। एक नाबालिग छात्र को कोरोना पाॅजिटिव रिपोर्ट आने पर धर्म संबंधित गालियां देकर लाठियों से पीटना क्या उस दारोगा की मानसिकता नही बताता? बीमार को पीटना तो खुद अपराध है। लेकिन इस देश में ऐसा कोई 'डाॅक्टर' नहीं है जो ऐसे 'बीमार' अफसरों का इलाज कर सके।
कोरोना के नाम पर तबलीगी जमात के बहाने जिस तरह मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है वह बताता है कि इस देश को कोरोना के साथ साथ सांप्रदायिक संक्रमण से लड़ना भी बहुत जरूरी है। मीडिया के प्रोपेगेंडा युद्ध से सांप्रदायिकता जो संक्रमण फैला है उतना संक्रमण तो बीते दस सालों मे भी नहीं फैल पाया था। लेकिन बीते दो सप्ताह में मीडिया ने कोरोना को 'जमाती' बनाकर उसे महामारी बताया। ताकि दिमाग़ी रूप से दिवालिया हो चुका वर्ग कोरोना संक्रमित मुसलमान को अपराधी समझे, और मुस्लिम पहचान वाले शख्स को कोरोना फैलाने वाला बताकर उसकी लिंचिंग करना राष्ट्रभक्ती समझने लगे। अगर सरकार कोरोना को लेकर सचमुच गंभीर है, तो उसे कोरोना के नाम पर फैलाई जा रही नफरत, मीडिया के प्रोपेगेंड युद्ध का भी इलाज ढूंढना होगा। क्योंकि कोरोना का हारना तो तय है, लेकिन उन दिमागों का क्या होगा जो कोरोना के नाम पर फैलाए गए सांप्रदायिकता के ज़हर से संक्रमित हो चुके हैं। क्या वे दशकों तक इस देश के समाजिक सद्धभाव के ताने बाने को नष्ट नहीं करेंगे? यह हल जितनी जल्दी निकल आए तो बेहतर हैं क्योंकि आए दिन स्थिती गंभीर होती जा रही है।
मुबाशिर के परिजनों ने बताया कि जब मुबाशिर को लेने के लिए एंबुलेंस आई तो प्रोपेगेंडा वहां पर मौजूद परीक्षितगढ़ पुलिस के दरोगा संजय बालियान ने उस बीमार छात्र को बेरहमी के साथ लाठियों से पीटना शुरू कर दिया। परिजनों के मुताबिकं दारोगा मुबश्शिर को पीटते हुए धर्म सूचक गालियां देते हुए कह रहे था कि बता और जाएगा जमात मे?...... मुबश्शिर को अब मेरठ के पांचली स्थित क्वाॅरेंटाइन सेंटर मे रखा गया है। परिजनों के मुताबिक उसके जिस्म पर लाठियों के निशान अभी भी मौजूद हैं। एक कोरोना संक्रमित इंसान के प्रति 'स्वस्थय' इंसानों का यह रवैय्या बताता है कि वे स्वस्थय नहीं बल्कि दिमाग़ी रूप से दिवालिया हो चुके हैं। सवाल यह है कि अगर कोई शख्स कोरोना संक्रमित होता है तो क्या उसे अपराधी माना जाएगा? क्या ऐसा भी कोई शख्स है जो खुद चाहकर अपनी मर्जी से बीमार होना चाहता हो? उसके बावजूद कोरोना रोगी मुसलमान को अपराधियों की तरह देखा जा रहा है। एक नाबालिग छात्र को कोरोना पाॅजिटिव रिपोर्ट आने पर धर्म संबंधित गालियां देकर लाठियों से पीटना क्या उस दारोगा की मानसिकता नही बताता? बीमार को पीटना तो खुद अपराध है। लेकिन इस देश में ऐसा कोई 'डाॅक्टर' नहीं है जो ऐसे 'बीमार' अफसरों का इलाज कर सके।
कोरोना के नाम पर तबलीगी जमात के बहाने जिस तरह मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है वह बताता है कि इस देश को कोरोना के साथ साथ सांप्रदायिक संक्रमण से लड़ना भी बहुत जरूरी है। मीडिया के प्रोपेगेंडा युद्ध से सांप्रदायिकता जो संक्रमण फैला है उतना संक्रमण तो बीते दस सालों मे भी नहीं फैल पाया था। लेकिन बीते दो सप्ताह में मीडिया ने कोरोना को 'जमाती' बनाकर उसे महामारी बताया। ताकि दिमाग़ी रूप से दिवालिया हो चुका वर्ग कोरोना संक्रमित मुसलमान को अपराधी समझे, और मुस्लिम पहचान वाले शख्स को कोरोना फैलाने वाला बताकर उसकी लिंचिंग करना राष्ट्रभक्ती समझने लगे। अगर सरकार कोरोना को लेकर सचमुच गंभीर है, तो उसे कोरोना के नाम पर फैलाई जा रही नफरत, मीडिया के प्रोपेगेंड युद्ध का भी इलाज ढूंढना होगा। क्योंकि कोरोना का हारना तो तय है, लेकिन उन दिमागों का क्या होगा जो कोरोना के नाम पर फैलाए गए सांप्रदायिकता के ज़हर से संक्रमित हो चुके हैं। क्या वे दशकों तक इस देश के समाजिक सद्धभाव के ताने बाने को नष्ट नहीं करेंगे? यह हल जितनी जल्दी निकल आए तो बेहतर हैं क्योंकि आए दिन स्थिती गंभीर होती जा रही है।